कायस्थ गद्य का तीखा सौंदर्य
जो दीख रहा खुले होने का भ्रम
कोई एक रूपक जो विसर्जित उसमें
एक अबूझ अमूर्त अन्यार्थ
एक विचलित पाठ कि व्याख्या क्या खूब
यथार्थ जो वह तिरोहित
सो कला से उत्खनित भव्यता में
जातियों के भीतर से उगते समीक्षा समीकरण
जैसे कायस्थ गद्य का तीखा सौंदर्य
रचना की देह में मानो
आलोचना सिंहों के नाखून
और आचार्यों के बघनखों की चमक
सच के पाठ का विलोम यह
झूठ की तरह सर्वसम्मत-समादृत
और इस तरह हमारी कृति
सर्वसम्मत झूठ से बना यथार्थ भाष्य कोई
जो नहीं सोचा था लिखते समय हमने कभी...।
जो दीख रहा खुले होने का भ्रम
कोई एक रूपक जो विसर्जित उसमें
एक अबूझ अमूर्त अन्यार्थ
एक विचलित पाठ कि व्याख्या क्या खूब
यथार्थ जो वह तिरोहित
सो कला से उत्खनित भव्यता में
जातियों के भीतर से उगते समीक्षा समीकरण
जैसे कायस्थ गद्य का तीखा सौंदर्य
रचना की देह में मानो
आलोचना सिंहों के नाखून
और आचार्यों के बघनखों की चमक
सच के पाठ का विलोम यह
झूठ की तरह सर्वसम्मत-समादृत
और इस तरह हमारी कृति
सर्वसम्मत झूठ से बना यथार्थ भाष्य कोई
जो नहीं सोचा था लिखते समय हमने कभी...।