शनिवार, 3 नवंबर 2018

अभी तूने वह कविता कहां लिखी है जानेमन - अरूणा राय


अभी तूने वह कविता कहां लिखी है जानेमन
मैंने कहां पढी है वह कविता
अभी तो तूने मेरी आंखें लिखीं हैं, होंठ लिखे हैं
कंधे लिखे हैं उठान लिए
और मेरी सुरीली आवाज लिखी है

पर मेरी रूह फना करते
उस अश्‍लील शोर की बाबत कहां लिखा कुछ तूने
जो मेरे सरकारी जिरह-बख्‍तर के बावजूद
मुझे अंधेरे बंद कमरे में
एक झूठी तस्‍सलीबख्‍श नींद में गर्क रखती है

अभी तो बस सुरमयी आंखें लिखीं हैं तूने
उनमें थक्‍कों में जमते दिन ब दिन
जिबह किए जाते मेरे खाबों का रक्‍त
कहां लिखा है तूने

अभी तो बस तारीफ की है
मेरे तुकों की लय पर प्रकट किया है विस्‍मय
पर वह क्षय कहां लिखा है
जो मेरी निगाहों से उठती स्‍वर लहरियों को
बारहा जज्‍ब किए जा रहा है

अभी तो बस कमनीयता लिखी है तूने मेरी
नाजुकी लिखी है लबों की
वह बांकपन कहां लिखा है तूने
जिसने हजारों को पीछे छोड़ा है
और फिर भी जिसके नाखून और सींग
नहीं उगे हैं

अभी तो बस
रंगीन परदों, तकिए के गिलाफ और क्रोसिए की
कढाई का जिक्र किया है तूने
मेरे जीवन की लड़ाई और चढाई का जिक्र
तो बाकी है अभी...

अभी तूने वह कविता लिखनी है जानेमन ...