चैट पर एक दिन उसने लिखा कि मुझसे मिलने के लिए आपको करना पड़ेगा - कयामत का इंतिजार।
फिर तो अगली सुबह मैं निकल पड़ा कयामत की खोज में। और राह में जो भी गिरजा, महजिद और शिवाला पड़ा सब में झुक-झुक के अरदास कर डाला कि जल्दी कहीं से बुलवा दे कयामत को और करने लगा उसका इंतिजार कि तभी मन की बेचैनी ने जगूड़ी की कुछ कविता पंक्तियां याद दिला दीं, जिसका निहितार्थ था कि इंतजार का एक तरीका यह भी है कि जिसका इंतजार हो उसके आने की दिशा में चलते हुए इंतिजार किया जाए।
सो चल पड़ा बस अड्डे की ओर। वहां पूछ-ताछ काउंटर पर जब पूछा कि कब तक आएगी कयामत की बस। तो पास खड़े एक डिरायवर ने मुझे निहारते हुए कहा-यूपी-बिहार में बस को कोई टेम नहीं होता। जा उधर लोहे की बेंच पर बैठ मूंगफली फोड़। आ ही जाएगी कयामत यूं ज्यादा हलतलबी हो तो सामने पुलिस थाने में जाकर पता कर आ-बड़े काम होते हैं कयामत को,तेरी तरा निठल्ली तो है नहीं वो, सारे रास्ते उसे किधर-किधर किया किया ढाना होता है कुछ पता भी है।
तब सड़क फलांगता मैं बढ चला सामने और सहमता हुआ थाने में घुसा और सामने पड़ने वाले पहले सिपाहीनुमा जीव को संबोधित करते हुए पूछा-कहां हैं दारोगा साहिब। इतना सुनकर सिपाहीजीवा ने मुझे उपर से नीचे तक खंगाला और फिर किसी काम का ना पाकर मूंछ तवाता बोला-अरे मझउंआ के चोन्हर हवे का। भेख-भूषा से त पत्तरकार बुझाते हो। पर बाणी से त बुझाता है कि सीधे गंगा किनारे से कहीं से चले आ रहे हो। हिन्दी त बुझाते होगा उपर पढी लियो का लीखल है। मैंने देखा तो वहां पुलिस चौकी लिखा था। तब उसने हंसते हुए कहा चल जा अगवा दस बांस वोहीं थाना दिख जाएगा और पढ लेना नहीं त सामनवा इस्कूल में जाके ना ढूढने लगना दारोगा जी को। फिर बुदबुदाया-कि सब बकलोल इयूपिए में आ गया बुझाता है लगता है बिहार का पत्ता साफे कर देगा सभ।
तो बताई दिशा में दुलकता मैं पहुंचा थाने। तो देखा कि पेड़ के नीचे चौपड़ जमी है। और समाजवाद जारी है जोर-शोर से। सिपाही,हवालदार और मुंशी सब एक ही घाट पर बैठे दिखे। झिझकता हुआ मैं आगे बढ़ा और पूछा-दारोगा जी हथिन। तो मंशी नुमा जीव ने चश्मा सरियाते हुए कहा- कुछ कामो बताओगे कि बस दारोगा जी ए से ...। दारोगा जी अभी देहाथ गए हैं वसूली में। तब मैंने धीरे से कहा दरअसल मुझे पता करना है कयामत का। अभी तक आयी नहीं। सुबह से दोपहर होने को आई।
एतना सुनना था कि पूरे चौपड़ ने दांत चियार दिया। ल एगो आउर भकलोल के देख, ससुर कयामत ढूंढ रहे हैं। अरे ससुर के नाती हमलोग का तुमको कयामत से कम बुझा रहे हैं। चल फूट इहां से। जेकरा देख ससुरा कयामते के इंतिजार में है। हमारा त सारा बिजनेसे चौपट कर देगा इ बनभाकुर सभ। तभी थाने की खोली से निसपेटर साहब ने गड़बड़ी के अंदेशे से आवाज दी-का है रे चंदनवा। इतना सुनते ही झोलानुमा एक सिपाही ने अटेंशन बजाते हुए कहा- जी हजूर,कोई पतरकार-जासूस बुझाता है,कयामत जी का पता करने आया है। यह सुनकर निसपेटर बोला-भेजो उन्हें।
अब मेरी हिम्मत बढ़ी तो थोड़ा तनता हुआ भीतर गया। कुर्सी पर बिठाते हुए निसपेटर ने पूछा-किस अखबार से हो आप। आप तो जानते ही हैं - कयामत का क्या कहना, कहीं मर-मार रही होगी ससुरी। आप भले आदमी लगते हो घर लौट जा...। अब कयामत कब संझा-पराती गाएगी इसका कोई अंदेशा नहीं हमें। देर किया तो रात हो जाएगी और बस अड्डे पर रात बितानी पड़ेगी तो हमारा भी सिरदर्द ।सुबह तक पता चला कि आपका ही संझा-पराती गवा गया। अब आप ठहरे पतरकार तो आप तो कष्ट से मुक्ति पा जाएंगे सदा के लिए पर आपको फूंकने में हमारा थाने का डिह बिक जाएगा। सात सौ रूपइवे मिलता है लाश जलाने का अब आप पत्रकार ठहरे तो आपको तो यमुना या हिंडन में दहाने में भी खतरे हैा कल को कोनो चील कौआ कुत्ता खींच लाया लाश को तो फिर हमारी मुसीबते है।
वइसे हमारा कंसेप्ट इ है सांपो मर जाए आउर लठियो नहीं टूटे। त जाइए घर। हां अपना मोबाइल नंबरवा छोड़े जाइए। कयामत के आने पर बात करा देंगे।
मन मसोस कर मैं बस अड्डे लौटा तो लगा कि यहां तो कयामत आकर जा चुकी है।हर तरफ मलबा बिखरा पड़ा था।जिसमें भिड़े कुत्ते-कौए संध्या-सूर्य नमस्कार में लगे थे। तभी मेरी निगाह बस स्टैंड के सामने खड़ी बहुमंजिली विशाल इमारत पर गई जिसके पीछे से निस्तेज चांद उभर रहा था अपनी मुर्दनी पसारता। मैंने सोचा क्या उस बिल्डिंग के लिए कयामत नहीं है।वह इस झोपड़पट्टी नुमा बसस्टैंड पर ही क्यों आती जाती है। तभी रात का अंदेशा हुआ तो घबरा कर मैंने सामने खुलती बस पकड़ ली।
अभी कुछ दूर निकला ही था थाने से कि फोन बजा- मैं कयामत बोल रही हूं। मैं हकलाया - कि इस तरह फोन पर आने की क्या हलतलबी थी। आप मेरे घर भी आ सकती थीं। देखिए निसपेटर साहब ने बताया कि आप भले इंसान लग रहे थे-तेा सोचा कि आपके घर जाकर आपको क्येां बेघर करूं- आप सजे रहिए
आप घजे रहिए।
मैं रूंआसा होता बोला - पर कयामत जी , मुझे तेा आपसे इश्क हो गया है। इतना सुनना था कि कयामत जी बिगड़ कर फराठी हो गईं। हेा गया है इश्क न तो जब मेरा हुश्न देखोगे तो फिर चचा मीर की तरह गाते फिरोगो- गोर किस दिलजले की है ये फलक...।
2008 में लिखित
फिर तो अगली सुबह मैं निकल पड़ा कयामत की खोज में। और राह में जो भी गिरजा, महजिद और शिवाला पड़ा सब में झुक-झुक के अरदास कर डाला कि जल्दी कहीं से बुलवा दे कयामत को और करने लगा उसका इंतिजार कि तभी मन की बेचैनी ने जगूड़ी की कुछ कविता पंक्तियां याद दिला दीं, जिसका निहितार्थ था कि इंतजार का एक तरीका यह भी है कि जिसका इंतजार हो उसके आने की दिशा में चलते हुए इंतिजार किया जाए।
सो चल पड़ा बस अड्डे की ओर। वहां पूछ-ताछ काउंटर पर जब पूछा कि कब तक आएगी कयामत की बस। तो पास खड़े एक डिरायवर ने मुझे निहारते हुए कहा-यूपी-बिहार में बस को कोई टेम नहीं होता। जा उधर लोहे की बेंच पर बैठ मूंगफली फोड़। आ ही जाएगी कयामत यूं ज्यादा हलतलबी हो तो सामने पुलिस थाने में जाकर पता कर आ-बड़े काम होते हैं कयामत को,तेरी तरा निठल्ली तो है नहीं वो, सारे रास्ते उसे किधर-किधर किया किया ढाना होता है कुछ पता भी है।
तब सड़क फलांगता मैं बढ चला सामने और सहमता हुआ थाने में घुसा और सामने पड़ने वाले पहले सिपाहीनुमा जीव को संबोधित करते हुए पूछा-कहां हैं दारोगा साहिब। इतना सुनकर सिपाहीजीवा ने मुझे उपर से नीचे तक खंगाला और फिर किसी काम का ना पाकर मूंछ तवाता बोला-अरे मझउंआ के चोन्हर हवे का। भेख-भूषा से त पत्तरकार बुझाते हो। पर बाणी से त बुझाता है कि सीधे गंगा किनारे से कहीं से चले आ रहे हो। हिन्दी त बुझाते होगा उपर पढी लियो का लीखल है। मैंने देखा तो वहां पुलिस चौकी लिखा था। तब उसने हंसते हुए कहा चल जा अगवा दस बांस वोहीं थाना दिख जाएगा और पढ लेना नहीं त सामनवा इस्कूल में जाके ना ढूढने लगना दारोगा जी को। फिर बुदबुदाया-कि सब बकलोल इयूपिए में आ गया बुझाता है लगता है बिहार का पत्ता साफे कर देगा सभ।
तो बताई दिशा में दुलकता मैं पहुंचा थाने। तो देखा कि पेड़ के नीचे चौपड़ जमी है। और समाजवाद जारी है जोर-शोर से। सिपाही,हवालदार और मुंशी सब एक ही घाट पर बैठे दिखे। झिझकता हुआ मैं आगे बढ़ा और पूछा-दारोगा जी हथिन। तो मंशी नुमा जीव ने चश्मा सरियाते हुए कहा- कुछ कामो बताओगे कि बस दारोगा जी ए से ...। दारोगा जी अभी देहाथ गए हैं वसूली में। तब मैंने धीरे से कहा दरअसल मुझे पता करना है कयामत का। अभी तक आयी नहीं। सुबह से दोपहर होने को आई।
एतना सुनना था कि पूरे चौपड़ ने दांत चियार दिया। ल एगो आउर भकलोल के देख, ससुर कयामत ढूंढ रहे हैं। अरे ससुर के नाती हमलोग का तुमको कयामत से कम बुझा रहे हैं। चल फूट इहां से। जेकरा देख ससुरा कयामते के इंतिजार में है। हमारा त सारा बिजनेसे चौपट कर देगा इ बनभाकुर सभ। तभी थाने की खोली से निसपेटर साहब ने गड़बड़ी के अंदेशे से आवाज दी-का है रे चंदनवा। इतना सुनते ही झोलानुमा एक सिपाही ने अटेंशन बजाते हुए कहा- जी हजूर,कोई पतरकार-जासूस बुझाता है,कयामत जी का पता करने आया है। यह सुनकर निसपेटर बोला-भेजो उन्हें।
अब मेरी हिम्मत बढ़ी तो थोड़ा तनता हुआ भीतर गया। कुर्सी पर बिठाते हुए निसपेटर ने पूछा-किस अखबार से हो आप। आप तो जानते ही हैं - कयामत का क्या कहना, कहीं मर-मार रही होगी ससुरी। आप भले आदमी लगते हो घर लौट जा...। अब कयामत कब संझा-पराती गाएगी इसका कोई अंदेशा नहीं हमें। देर किया तो रात हो जाएगी और बस अड्डे पर रात बितानी पड़ेगी तो हमारा भी सिरदर्द ।सुबह तक पता चला कि आपका ही संझा-पराती गवा गया। अब आप ठहरे पतरकार तो आप तो कष्ट से मुक्ति पा जाएंगे सदा के लिए पर आपको फूंकने में हमारा थाने का डिह बिक जाएगा। सात सौ रूपइवे मिलता है लाश जलाने का अब आप पत्रकार ठहरे तो आपको तो यमुना या हिंडन में दहाने में भी खतरे हैा कल को कोनो चील कौआ कुत्ता खींच लाया लाश को तो फिर हमारी मुसीबते है।
वइसे हमारा कंसेप्ट इ है सांपो मर जाए आउर लठियो नहीं टूटे। त जाइए घर। हां अपना मोबाइल नंबरवा छोड़े जाइए। कयामत के आने पर बात करा देंगे।
मन मसोस कर मैं बस अड्डे लौटा तो लगा कि यहां तो कयामत आकर जा चुकी है।हर तरफ मलबा बिखरा पड़ा था।जिसमें भिड़े कुत्ते-कौए संध्या-सूर्य नमस्कार में लगे थे। तभी मेरी निगाह बस स्टैंड के सामने खड़ी बहुमंजिली विशाल इमारत पर गई जिसके पीछे से निस्तेज चांद उभर रहा था अपनी मुर्दनी पसारता। मैंने सोचा क्या उस बिल्डिंग के लिए कयामत नहीं है।वह इस झोपड़पट्टी नुमा बसस्टैंड पर ही क्यों आती जाती है। तभी रात का अंदेशा हुआ तो घबरा कर मैंने सामने खुलती बस पकड़ ली।
अभी कुछ दूर निकला ही था थाने से कि फोन बजा- मैं कयामत बोल रही हूं। मैं हकलाया - कि इस तरह फोन पर आने की क्या हलतलबी थी। आप मेरे घर भी आ सकती थीं। देखिए निसपेटर साहब ने बताया कि आप भले इंसान लग रहे थे-तेा सोचा कि आपके घर जाकर आपको क्येां बेघर करूं- आप सजे रहिए
आप घजे रहिए।
मैं रूंआसा होता बोला - पर कयामत जी , मुझे तेा आपसे इश्क हो गया है। इतना सुनना था कि कयामत जी बिगड़ कर फराठी हो गईं। हेा गया है इश्क न तो जब मेरा हुश्न देखोगे तो फिर चचा मीर की तरह गाते फिरोगो- गोर किस दिलजले की है ये फलक...।
2008 में लिखित