कारवां karvaan
जन मीडिया
सोमवार, 29 सितंबर 2008
सफेद चाक हूं मैं - कुमार मुकुल
समय की
अंधेरी
उदास सड़कों पर
जीवन की
उष्ण, गर्म हथेली से
घिसा जाता
सफेद चाक हूं मैं
कि
क्या
कभी मिटूंगा मैं
बस
अपना
नहीं रह जाउंगा
और तब
मैं नहीं
जीवन बजेगा
कुछ देर
खाली हथेली सा
डग - डग - डग ...
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