क्या देवी सरस्वती मुस्कुराएंगी
जब कैद करोगे तुम अपने कवियों को?
कोरोना से संक्रमित कर
विभ्रमित कवि को
जब तुम बिठाओगे
पेशाब के दलदल में
भारत!
क्या सरस्वती खुश होंगी?
भेज रहा हूं तुम्हारे लिए
ये शब्द
ताकि ये जगमगा सकें
सूर्य रश्मियों में बिखरे
धूल के कणों की तरह.
ओह भारत!
क्या तुम दोगे इस बात की इजाज़त
की उनकी अंधेरी कोठरी में
सुबह की किरणें
प्रवेश कर सकें
बग़ैर तलाशी के
या फिर चंद्रमा की चांदनी
या सुदूर तारों की झिलमिल?
भारत!
सरस्वती की दिव्य मुस्कान
अब उनके होठों पर मुरझाने लगी है.....
हिंदी अनुवाद - अमिता शीरीं