उपन्यास की सामग्री किशोर स्तर की है और भाषा के लिहाज से यह किशोरों के लिए भी बहुत नीरस है।
कुछ
शोध अनुमानों को लेकर कल्पना की जो उड़ान रत्नेश्वर ने भरी है उसमें एक
पक्ष की नायिका गरुड़ जैसे पक्षी पर उड़ान भरती है तो दूसरे शत्रु पक्ष के
लोग सिंह और भेड़ियों पर सवार होकर हमला करते हैं।
ऐसा
माना जाता है कि हमारा बोला हुआ हर शब्द वातावरण में मौजूद रहता है। इसी
को आधार बनाकर यह उपन्यास रचा गया है। उपन्यास के पात्र अपने वैज्ञानिक
उपकरणों से 32000 साल पहले के मनुष्यों की आवाजों को डीकोड करते हैं और उस
काल की कथा आकार पाती है। उपन्यास गरुड़ की सवारी करने वाले किन्नर कबीले
और सिंह और भेड़ियों की सवारी करने वाले परा कबीले के युद्ध से आरंभ होता
है। आगे परा के हमलों से खुद को बचाने को पांच कबीले एक होकर परा को नष्ट
करने की योजना बनाते हैं। बीच में मैमथ के शिकार पर एक अध्याय है। अंत तक
आते-आते उपन्यासकार प्रेम की महिमा प्रकट करने में लग जाता है और परा को
प्रेम से जीत लेने का भाव पैदा होता है। इसके आगे उपन्यास जारी है, मतलब
दूसरे भावी अप्रकाश्य भाग में कहानी आगे बढ़ेगी।
उपन्यास
को पढ़ते हुए कुछ चालू अंग्रेजी फिल्मों की फंतासी दिमाग में उभरती है।
पक्षियों पर उड़ान भरने, मैमथ का शिकार करने और ईसा मसीह की मृत्यु दंड पर
आधारित फिल्मों से लिए गए कुछ दृश्य जहां-तहां जड़े गए से लगते हैं।
आह, ओह, आउच की शैली में लिखा गया यह उपन्यास अगर फिल्माया जाए तो अंग्रेजी चालू फिल्मों जैसा कुछ मनोरंजन संभव है।
उपन्यास
में कुछ विचित्र शब्दों का प्रयोग जहां-तहां है। जैसे, बिग भूकंप, पता
नहीं यह क्या है, शायद यह बिग बैंग की पैरोडी है। ऐसा ही एक बचकाना प्रयोग
मिला, 'अर्ध पिघलित'।
दो मित्रों की राय इस किताब पर
मैंने जानने की कोशिश की, पर उनमें कोई भी किताब के दस पेज भी पढ़ने की
हिम्मत नहीं दिखा सका। यूं मेरे और मेरे मित्रों की समझ की सीमा है, मित्र
रत्नेश्वर माफ करेंगे।