मेरी मानो
मत ले जाओ
इन विदूषको को
आसमान के पार
चौदह बेजान ग्रह
ये थोड़े धूमकेतु
दो तारे
और जब तक तुम तीसरे का रुख करोगे
तुम्हारे विदूषक भूल चुके होंगे
हंसने हंसाने की बातें
क्या है कि
वह लोक
और इहलोक वाली
यह दुनिया ---
जो है सो हइये है
माने
एकदम पूर्ण !
ये मसखरे
इस पूर्णता को
कभी क्षमा नहीं करेंगे
लिख लो
उन्हें क्या मजा आएगा
इन सब में
इस समय में ( जो न जाने कब से है )
यह सौंदर्य (कोई कमी ही नहीं जिसमे )
और तुम्हारा यह गुरुत्व ( इसमें कहाँ है कोई गुंजाइश मुस्कराने भर की भी )
जिस पूर्णता को देख
लोगों के मुँह
खुले के खुले रह जाते हैं
विदूषक जम्हाई लेगा उसे देख कर
जब तक तुम चौथे तारे की ओर बढ़ोगे
हालात और बिगड़ जाएंगे
तिरछी मुस्कान,
और यह मारक संतुलन
कोई बड़बड़ाता है---
चोंच में रसगुल्ला दबाए वो कौआ याद है
याद है महाराज के फोटो पर मक्खियों का भनभनाते हगते जाना
झरने में नहाता वो बंदर भी न...
जिंदगी तो वो थी
अनुवाद - सत्यार्थ अनिरुद्ध