शुक्रवार, 25 जनवरी 2008

जूता मेरे माथे पर सवार है - मैथिली कविता - महाप्रकाश

बीस साल पहले सहरसा में जिन महाप्रकाश जी के साथ सडकों पर घूमते हुए वर्षों के साथ में मैंन हिन्‍दी कविता की बारहखड़ी सीखी थी उनका पहला कविता संग्रह अंतिका प्रकाशन से अब जाकर आया है , पढिए उससे एक कविता जो उसी काल खण्‍ड में लिखी गयी थी।

जूता
हमर माथ पर सवार अछि


जूता हमर माथ पर सवार अछि

हम नॉंगट पयर दरारि

शोणितक नदी कँ

पयर मे बन्‍हने

कॉंटक अनन्‍त जंगल सँ लड़ैत

मरूभूमि मे पड़ल छी...


आँखि मे पानिक सतह पर

टुटैत हमर अर्जित स्‍वप्‍न-संगीतक

विद्रोही राग-रागिनी

उलहन-उपराग अलापैत अछि...


हमर आस्‍थाक सार्थक शब्‍द

हमर संस्‍कारक आधारशिला

कोन आश्रम कोन ज्‍योतिपिंड केँ

हम देने रही हाक...

यात्रा पूर्व जत रोपने रही

संकल्पित पयर

जत भरने रही फेफड़ा में

सर्वमांगल्‍ये मंत्रपूरित हवा

कोन गली कोन चौबटिया पर आनाम भेल...


हमर संगक साथी सम्‍बन्‍ध सर्वनाम

अपन विशेषण अपन सुरक्षाक

अन्‍वेषण मे फँसि गेल

जूताक आदिम गह्वर में

बना लेलनि अपन-अपन घर दुर्निवार...


हे हमर हिस्‍साक ज्‍योति सखे!

देखू कत-कत सँ दरकि गेल अछि

हमर आस्‍थाक चित्र-लोक

कत-कत सँ दरकि गेल अछि रंग

हमर दर्द कहू...

कत-कत सँ टूटि गेल हमर शक्ति-क्रम

हमर हाथ गहू...


जूता हमर माथ पर सवार अछि।

बुधवार, 5 दिसंबर 2007

फिर क्‍यों है यह प्‍यार - रवीन्‍द्रनाथ टैगोर

अगर प्‍यार में और कुछ नहीं
केवल दर्द है फिर क्‍यों है यह प्‍यार ?
कैसी मूर्खता है यह
कि चूंकि हमने उसे अपना दिल दे दिया
इसलिए उसके दिल पर
दावा बनता है,हमारा भी
रक्‍त में जलती ईच्‍छाओं और आंखों में
चमकते पागलपन के साथ
मरूथलों का यह बारंबार चक्‍कर क्‍योंकर ?

दुनिया में और कोई आकर्षण नहीं उसके लिए
उसकी तरह मन का मालिक कौन है;
वसंत की मीठी हवाएं उसके लिए हैं;
फूल, पंक्षियों का कलरव सबकुछ
उसके लिए है
पर प्‍यार आता है
अपनी सर्वगासी छायाओं के साथ
पूरी दुनिया का सर्वनाश करता
जीवन और यौवन पर ग्रहण लगाता

फिर भी न जाने क्‍यों हमें
अस्तित्‍व को निगलते इस कोहरे की
तलाश रहती है ?

अनुवाद-कुमार मुकुल

रविवार, 11 नवंबर 2007

आदमजादों के अभयारण्‍य - कुमार मुकुल

 शेर - चीतों के बाद

अब आदमी के भी

बनने लगे हैं अभयारण्‍य


शुभ्र धवल छंटी हुई दाढ़ी

और चश्‍मे के भीतर से चमकती

उस दरिंदे की आंखों को तो देखो

एक मिटती प्रजाति है यह


पर एक पूरा इलाका है

इसके हवाले


ओह  कैसी गझिन  रक्‍तश्‍लथ है

हंसी इसकी

इस रक्‍तपायी की जीभ तो

दिखती नहीं कभी।