गुरुवार, 14 अगस्त 2008
चंद्रमोहिनी से मुलाकात - कुमार मुकुल - डायरी
रात दस बजने को थे। पूरे दिन हो रही बारिश अभी भी छिट-पुट हो रही थी। सो मैंने डाक्टर विनय कुमार से कहा कि मैं चलता हूं अब आप रूस से वापिस आयें तो फिर मनोवेद फाईनल कर लेंगे। उन्होंनै कहा कि हमारी फ्लाईट बारह के बाद है तो हम ग्यारह बजे निकलेंगे तो आपको रास्ते में मोहम्मदपुर छोडते जाएंगे। चलिए अनिल जनविजय से बात भी कर लें आपके सामने। फिर उन्होंने अनिल जी से बात की कि मास्को कल दोपहर के बाद रहेंगे फिर वहां से बात कर मिलने का तय करेंगे। बात खत्म होने पर सबरे घर लौटने की आदत वाला मेरा मन फिर उचटने लगा। मैंने कहा कि ग्यारह के बाद गली में कुत्ते पेरशान करते हैं खासकर इस बरसात में दिक्कत होगी। तो वो मान गये और मैं पास के बस स्टैंड पर आया। वहां आकर मुझे लगा कि यहां अगर कुछ देर बस नहीं आयी तेा फिर दिक्कत होगी या आटो लेना होगा। तो क्यों ना एक किलोमीटर चलकर सफदरजंग एअरपोर्ट से बस ले ली जाए। चलना हमेशा से प्रिय भी है मुझे। सो लपकता आ गया वहां।
स्टैंड पर आठ-दस लोग थे। कल पंद्रह अगस्त होने से गाडियां कुछ कम आ जा रही थीं रूट बदले होने के चलते। 460 आकर निकली तो उसे छोड दिया कि नहीं 588 आ जाए तो सरोजनी नगर से फिर दो किलोमीटर चलकर घर चला जाउंगा। कुछ मिनट बीते थे कि सामने सडक पर एक वैगनर रूकी और उससे एक युवती ने हाथ हिलाए। मेरी समझ में नहीं आया कि वह किसे बुला रही है। पर वह मेरी ओर ही देख रही थी। उसके पीछे की सीट पर तेरह-चौदह साल का किशोर बैठा था तो उसने शीशा हटा कर पूछा किधर चलना है। एकाध क्षण सोच में पडे रहने के बाद मैंने कहा मोहम्मदपुर पर उसे सुनाई नहीं दिया तो फिर जोर से बोला- भीकाजी कामा की ओर। तब मैं आगे बढ गया एकाध कदम रात हो रही थी पहुंचने की जल्दी तो थी ही। तो लडकी ने पूछा- सफदरजंग छोड दूंगी तो काम चल जाएगा। मैंने कहा - हां। फिर उसने बगल के गेट की ओर हाथ उसे खोलने को हाथ बढाया तब तक मैं पीछे वाले गेट की ओर हाथ बढा चुका था और फिर मैं बैठ गया।
वह कोई पच्चीस साल के करीब की भरे शरीर की सुदर सी युवती थी। गाडी में एक पुराना गाना बज रहा था , ... आंखों ही आंखों में प्यार हो जाएगा। उसकी रिमोट उस किशोर के हाथ थी। कुछ दूर चलने के बाद युवती ने पूछने के अंदाज में कहा कि यहां से मोड लें तो ठीक रहेगा, सरोजनी नगर की ओर से निकल जाएंगे - मैंने धीरे से कहा - हां। फिर उसने कहा कि पंद्रह अगस्त के चलते आज बसें कम हैं। फिर चुप्पी सी रही। सरोजनी नगर आने के बाद युवती ने पूछा- आप बता देंगे कहां उतारना है ...। मैंने कहा - हां, पुल के बाद आगे कहीं उतर जाउंगा। पुल के बाद जब लाल बत्ती पर गाडी रूकी तो मैंने कहा कि आगे बाएं कहीं उतार दीजिएगा । तो युवती ने पूछा- यहां से चले जाइएगा ना ...। मैंने कहा - हां हां ...। फिर मैंने कहा - मैं एक पत्रिका निकालता हूं उसकी एक कापी छोड जाता हूं और मनोवेद की एक कापी निकाल कर किशोर को दी। निकलते समय युवती ने पूछा - कौन सी पत्रिका है । मैने कहा - मनोविज्ञान को लेकर हिंदी की पहली पत्रिका है यह, पढिएगा अच्छी लगे तेा बताइएगा।
उतरते-उतरते युवती ने पूछा आपका शुभ नाम। मैंने कहा - ...। फिर मैंन भी गाडी का दरवाजा बंद करने से पहले पूछा और आपका नाम। जवाब मिला - चंदमोहिनी। फिर गाडी चलने को हुई तो किशोर ने कहा - थैंक यू अंकल, मैंने दुहराया-थैंक यू...-
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4 टिप्पणियां:
आज का समय देखते हुए तो अचरज करने योग्य घटना ही कहलाई. वो भी दिल्ली जैसी जगह और रात में.
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाऐं ओर बहुत बधाई आप सब को
We should have a great day today.
Mukul ji, aaj pahali baar aapki dayari padhi. aapki dayari padhana bhut achha laga. ab aapki dayari ke baki bache hue part bhi padugi. bhut badhiya likha hai aapne.
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