कनॉट प्लेस स्थित काफी हाउस, मोहन सिंह प्लेस में पिछले शनिवार 7 मार्च को हर साल की तरह राजधानी के कवियों-कथाकरों-गीतकारों-गजलकारों ने होली पर अपनी-अपनी हांकी। जिसमें कुछ बकवास और कुछ रंग-रास साथ साथ चलते रहे। यूं इसे नाम ही ब्रहृमांड मूर्ख महा-अखाड़ा दिया गया था। इस अखाड़े के ताउ थे मूर्खधिराज राजेन्द्र यादव। इसमें हर शनिवार यहां बैठकी करनेवाले लेखक शामिल थे। पहले इस बैठकी में इकबाल से लेकर विष्णु प्रभाकर तक शामिल होते थे। तब हिन्दी उर्दू अंग्रेजी की अलग अलग टेबलें लगती थीं। इधर के वर्षों में यह आयोजन व्यंग्यकार रमेश जी के सौजन्य से होता रहा है। वे अपनी टेबलों पर विराजमान लेखकों के बीच खड़े होकर घंटों अपनी होलियाना बेवकूफियों का इजहार करते रहे।
बैठक में पंकज बिष्ट को काफी हाउस का अंतिम पिटा मोहरा पुकारा गया। इस अवसर पर भी रचनाकार अपनी रचनाएं सुनाने से बाज ना आए और उन्होंने अपनी अपनी धाक जमाने की कोशिश की। कुछ की जमी भी। सुरेश सलिल ने एक शेर सुनाया -
कोई सलामत नहीं इस शहर में कातिल के सिवा -
फिर उन्हें चांद की याद सताने लगी-
चांद को लेकर चली गई है दूर बहुत बारात
आओ चलकर हम सोजाएं बीत गई है रात
फिर लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने सुनाया-
चाहे मस्जिद बाबरी हो या हो मंदिर राम का
जिसकी खातिर झगड़ो हो वह पूजाघर किस काम का
फिर वे जमाने से शिकवा में लग गए-
एक जमाने में बुरा होगा फरेबी होना
आज के दौर में ये एक हुनर लगता है
रेखा व्यास ने अपना दर्द गाया फिर -
जब से बिछ़डे हैं रोए नहीं हैं हम
बाल जो छुए थे तूने धोए नहीं हैं
फिर रमेश जी ने राजेन्द्र यादव को खलनायक बताते हुए साधना अग्रवाल को खलनायिका घोषित किया। फिर अनवार रिजवी ने मिर्जा मजहब जानेसार का चर्चित शेर सुनाया-
खुदा के वास्ते इसको न टोको
यही इस शहर में कातिल रहा है
इसके बाद ममता वाजपेयी ने फूल-पत्तों के दर्द को जबान दी-
मेरी मंजिल कहां मुझको क्या खबर
कह रहा था फूल एक दिन पत्तियों से
बैठक में पंकज बिष्ट को काफी हाउस का अंतिम पिटा मोहरा पुकारा गया। इस अवसर पर भी रचनाकार अपनी रचनाएं सुनाने से बाज ना आए और उन्होंने अपनी अपनी धाक जमाने की कोशिश की। कुछ की जमी भी। सुरेश सलिल ने एक शेर सुनाया -
कोई सलामत नहीं इस शहर में कातिल के सिवा -
फिर उन्हें चांद की याद सताने लगी-
चांद को लेकर चली गई है दूर बहुत बारात
आओ चलकर हम सोजाएं बीत गई है रात
फिर लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने सुनाया-
चाहे मस्जिद बाबरी हो या हो मंदिर राम का
जिसकी खातिर झगड़ो हो वह पूजाघर किस काम का
फिर वे जमाने से शिकवा में लग गए-
एक जमाने में बुरा होगा फरेबी होना
आज के दौर में ये एक हुनर लगता है
रेखा व्यास ने अपना दर्द गाया फिर -
जब से बिछ़डे हैं रोए नहीं हैं हम
बाल जो छुए थे तूने धोए नहीं हैं
फिर रमेश जी ने राजेन्द्र यादव को खलनायक बताते हुए साधना अग्रवाल को खलनायिका घोषित किया। फिर अनवार रिजवी ने मिर्जा मजहब जानेसार का चर्चित शेर सुनाया-
खुदा के वास्ते इसको न टोको
यही इस शहर में कातिल रहा है
इसके बाद ममता वाजपेयी ने फूल-पत्तों के दर्द को जबान दी-
मेरी मंजिल कहां मुझको क्या खबर
कह रहा था फूल एक दिन पत्तियों से
2 टिप्पणियां:
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ .
dilchasp reporting kar di aapne
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