तमाम संघर्षशील युवाओं की तरह सुधीर सुमन भी सपने देखते हैं और उनके सपने दुनिया को बदल देने की उनकी रोजाना की लड़ाई का ही एक हिस्सा हैं। जन राजनीति के ज्वार-भाटे में शामिल रहने के कारण उनकी कविताओं की राजनीतिक निष्पत्तियाँ ठोस और प्रभावी बन पड़ी हैं। उदाहरण के लिए, उनकी ‘गांधी’ कविता को देखें कि कैसे एक वैश्विक व्यक्तित्व की सर्वव्यापी छाया सुकून का कोई दर्शन रचने की बजाय बाजार के विस्तार का औजार बनकर रह जाती है —
गांधी
तुम्हारी तस्वीरें देख-देख
जवान हुई हमारी पीढ़ी
तुम्हारी तस्वीरों से भरे कमरों में
देखी बनती योजनाएं
हिंसा और लूट की
तुम्हें ढूंढा इस मुल्क में और नाकाम रहे
यह और बात है कि
तुम्हारा कातिल भी नाम लेता है
तुम्हारे भक्त होने का स्वांग रचता है
तुम्हारी तस्वीरों की कमी नहीं
डाक-टिकटों में भी तुम दिखते हो
चलो कोई बात नहीं
काला ठप्पा सहकर लोगों को जोड़ते तो हो
फिर भी मनुष्यता का है अकाल
अहिंसा नजर नही आती
अहिंसा तुम्हारी एक दिन अचानक
कैद नजर आई पांच सौ के नोट में
उसी में जड़ी थी तुम्हारी पोपली मुस्कान
उस नोट में तुम्हारी तस्वीर है तीन जगह
एक में तुम आगे चले जा रहे
पीछे हैं कई लोग
तुम कहां जा रहे हो
क्या पता है किसी को?
सफेद हिस्से से
झांकती है चमकीली धुंधभरी आकृति
आखिर तुम किस काम आए बाबा
किसके काम आए!
(2004)
शीघ्र प्रकाश्य सात कवियों के कविता संग्रह सप्तपदीयम् से ...
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आखिर तुम किस काम आए बाबा
किसके काम आए!
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