'ये कोई योजनाबद्ध ढंग से लिखी गई पुस्तक नहीं है। - -' 25 सालों में 20 नौकरियां कर चुकनेवाला आदमी कुछ भी योजनाबद्ध कैसे कर सकता है'। दरअसल मुकुल के कविता के होलटाइमर होने ने ही इसे संभव बनाया है ।
'पुस्तक में कुछ कवियों से प्रेरित, उन्हें संबोधित या उनसे प्रभावित कविताएं भी हैं।', ' नोट्स की तरह ये कविताएं भी कवि को समझने में कुछ सहायक होंगी'। अपनी टिप्पणी में पंकज चौधरी लिखते भी हैं - मैं इसलिए आपको (कुमार मुकुल को) अनौपचारिक आलोचना का लौहस्तंभ मानता हूं। यदि मुक्तिबोध के बाद का साहित्य का इतिहास लिखना हो तो यह पुस्तक कितनी जरूरी है यह समझा जा सकता है गो कि यह खुद ही नक्सलबाड़ी के बाद के हिंदी कवियों पर नोट्स का दस्तावेजीकरण भी है यह।
पुस्तक में तार सप्तक के छह कवि हैं, अकविता के एक, नक्सलबाड़ी प्रेरित 16, आठवां दशक अभियान के छह, एक दलित महिला, एक आदिवासी महिला और 17 महिला कवि सहित मैथिली, बांग्ला, मगही के भी कवि हैं। यूं 100 कवियों को मुकुल ने श्रेष्ठताक्रम में नहीं रखा या ऐसा भी नहीं कह सकते कि मात्र यही 100 कवि रहे हैं। किसी भी नये पाठक को हिंदुस्तान के कवि के नाम पर इस विज्ञापनी व सोशल मीडिया के उभार के दौर में 'अकवि-सुकवि' की भरमार में से जेन्युन कवियों की सूची प्राप्त करना असंभव होगा। यह पुस्तक एक साथ जेन्युन 100 कवियों से परिचित करा देती है और उसकी विरासत के साथ जोड़ देती है। लेखक को इस पुस्तक के लिए बधाई!
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